Thursday, September 8, 2011

पंडित महेन्द्रपाल आर्य के प्रश्नों के उत्तर

लेखक : मुशफिक सुल्तान (Mushafiq Sultan)

पंडित महेन्द्रपाल आर्य का प्रश्नपत्र डाउनलोड करने का वेबसाइट लिंक > http://www.scribd.com/doc/11385957/Questions-to-Alim-e-Deen-by-Arya-Pundit

यह उत्तर पंडित महेंद्रपल आर्य जी को ईमेल (email) के माध्यम से भेज दिया गया है और उनको इसकी सूचना टेलीफ़ोन पर भी दी जा चुकी है. इसके अतिरिक्त हम ने अपने उत्तर नीचे दी गयी संस्थाओं को भी भेज दिए हैं:
१. सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा (Sarvadeshik Arya Pratinidhi Sabha)
२. अग्निवीर (Agniveer)
३. आर्य समाज जामनगर (Arya Samaj Jamnagar)

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील और अत्यन्त दयावान हैं

प्रिय मित्रो, कुछ समय से इन्टरनेट पर पंडित महेंद्रपाल आर्य के १५ प्रश्नों की अधिक चर्चा थी. आर्य समाज की विचारधारा के लोग इस प्रश्नपत्र को प्रचारित कर रहे हैं, और इस प्रश्नपत्र के उत्तर की मांग कर रहे हैं. जब हमने इन प्रश्नों का अध्यन किया तो पता चला कि अधिकतर प्रश्न स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के समुल्लास १४ और बाबू धर्मपाल आर्य की पुस्तक 'तरके इस्लाम' की ही नक़ल हैं. बाबु धर्मपाल ने भी पंडित जी की तरह इस्लाम को छोड़ कर आर्य समाज को अपनाया था. लेकिन बाद में मुस्लिम विद्वानों के उत्तर से संतुष्ट हो कर उन्हों ने फिर से इस्लाम स्वीकार कर लिया और अपना नाम गाजी महमूद रखा. प्रश्नपत्र के आरम्भ में पंडित महेंद्रपाल ने लिखा है-

इस्लाम जगत के विद्वानों से कतिपय प्रश्न

सही जवाब मिलने पर इस्लाम स्वीकार

हालांकि, सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास १४ का इस्लाम के विद्वानों ने पहले ही विस्तृत उत्तर दे दिया है, और हम भी अपनी वेबसाइट पर नए तथ्यों के साथ उसका उत्तर दे रहे हैं (क्लिक करें). इस के बावजूद हम पंडित जी के प्रश्नों के उत्तर देने जा रहे हैं ताकि वो ये न कहें कि मुसलमान इनके उत्तर नहीं दे सकते. इसके अतिरिक्त पंडित जी की घोषणा में हमें विरोध दिख रहा है. प्रश्नपत्र के आरम्भ में वो स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि यदि उनके प्रश्नों के सही उत्तर मिलें गे तो वह इस्लाम स्वीकार करें गे. लेकिन प्रश्नपत्र के अंत में वह कहते हैं, "सभी प्रश्नों का सही जवाब मिलने पर इस्लाम को स्वीकार करने को विचार किया जा सकता है."

यदि सही उत्तर मिल जाएँ तो फिर विचार क्या करना है? सीधे स्वीकार ही करलें. में आशा करता हूँ कि महेन्द्रपाल जी इस उत्तर से संतुष्ट हो कर इस्लाम स्वीकार करें गे.

प्रश्न १

उत्तर

जिस आयत पर आपने आक्षेप किया हे उसका सही अनुवाद ये हे।

"ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों के विरुद्ध काफिरों को अपना संरक्षक मित्र न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं,..." [सूरह आले इमरान, आयत २८]

इस आयत में जो अरबी शब्द "अवलिया" आया हे उसका मूल "वली" है, जिसका अर्थ संरक्षक है, ना कि साधारण मित्र। अंग्रेजी में इसको "ally" कहा जाता है। जिन काफिरों के बारे में ये कहा जा रहा है उनका हाल तो इसी सूरह में अल्लाह ने स्वयं बताया है। गोर से सुनिए।

"ऐ ईमान लानेवालो! अपनों को छोड़कर दूसरों को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ, वे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं करते। जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है, वह तो इससे भी बढ़कर है। यदि तुम बुद्धि से काम लो, तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं।" [सूरह आले इमरान, आयत 118]

पंडित जी, आप ही कहिये, ऐसे काफिरों से किस प्रकार मित्रता हो सकती है? कुरआन में गैर धर्म के भले लोगों से दोस्ती हरगिज़ मना नहीं है। सुनिए, कुरान तो खुले शब्दों में कहता है.

"अल्लाह तुम्हें इससे नहीं रोकता कि तुम उन लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो, जिन्होंने तुमसे धर्म के मामले में युद्ध नहीं किया और न तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला। निस्संदेह अल्लाह न्याय करनेवालों को पसन्द करता है अल्लाह तो तुम्हें केवल उन लोगों से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की। जो लोग उनसे मित्रता करें वही ज़ालिम है।" [सूरह मुम्ताहना; ६०, आयत ८-९]

और सुनिए

"ऐ ईमानवालो! अल्लाह के लिए खूब उठनेवाले, इनसाफ़ की निगरानी करनेवाले बनो और ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इनसाफ़ करना छोड़ दो। इनसाफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है। अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह को उसकी ख़बर हैं।" [सूरह माइदह , आयत ८].

अल्लाह कभी लोगों को नहीं बाँटते। सब अल्लाह के बन्दे हैं। लोग अपनी मूर्खता से बट जाते हैं। जो लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते वो स्वयं अलग हो जाते हैं। इसमें अल्लाह का क्या दोष?

इन आयात से स्पष्ट होता हे कि कुरआन सभी गैर मुस्लिमों से मित्रता करने से नहीं रोकता। तो यह है इस्लाम की शिक्षा जो सुलह, अमन और इन्साफ की शिक्षा है।

वेदों की शिक्षा

"हे अन्न वाले! [व वज्र वाले परमेश्वर]। तुझको स्तुति करने वाले लोग अच्छे प्रकार प्रसन्न करें। तू [हमारे लिए] धन कर, वेद द्वेषों को नष्ट कर।" [अथर्ववेद २०:९३:१]

"हम लोग जिस से द्वेष करें और जो हम से द्वेष करे, उस को हम शेर आदि पशुओं के मुख में डाल दें।" [यजुर्वेद १५:१५ दयानंद भाष्य]

"तू [वेद निंदक] को, काट डाल, चीर डाल, फाड़ डाल, जला दे, फूँक दे, भस्म कर दे।" [अथर्ववेद १२:५:६२]

जिस ईश्वर ने वेदों में गैर लोगों से ऐसे भयंकर व्यव्हार की शिक्षा दी है और उनको दस्यु, राक्षस, और असुर के ख़िताब दिए हैं, वह ईश्वर पक्षपाती अवश्य है।

और सुनिए अथर्ववेद १२:५:५४ क्या कहता है

"वेदानुयायी सत्यवीर पुरुष नास्तिकों का नाश करें"

अब प्रश्न ये है कि नास्तिक कोन हैं? केवल ईश्वर में आस्था न रखने वाले? चलिए देखते हैं कि स्वामी दयानंद सरस्वती नास्तिक किसको कहते हैं.

"नास्तिक वह होता है, जो वेद ईश्वर की आज्ञा, वेदविरुद्ध पोपलीला चलावे" [सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास ११]

इस परिभाषा में वह सारे लोग आते हैं जिन की वेदों में आस्था नहीं है जैसे मुस्लिम, ईसाई, जैनी, बोद्ध आदि. इस से यह स्पष्ट होता है कि वेद अन्य धर्मों के लोगों को नष्ट करने की शिक्षा देता है.

स्वामी दयानंद सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश में ब्रह्मोसमाज और प्रर्थ्नासमाज की आलोचना करते हुए लिखते हैं,

"जिन्होंने अँगरेज़, मुसलमान, चंडाल आदि से भी खाने पीने का अंतर नहीं रखा। उन्होंने यही समझा कि खाने और जात पात का भेद भाव तोड़ने से हम और हमारा देश सुधर जाएगा लेकिन ऐसी बातों से सुधार कहाँ उल्टा बिगाड़ होता हे।" [सत्यार्थ प्रकाश, समुलास ११]

पंडित जी, मुसलमान और ईसाई कितने ही सदाचारी हों, स्वामी जी के अनुसार उनके साथ खाना उचित नहीं। यह पक्षपात नहीं तो और क्या हे? क्या आप अब भी ऐसे 'आर्य समाज' में रहना पसंद करेंगे?

प्रश्न २

उत्तर

पंडित जी आपके दुसरे प्रश्न में भी काफी गलतियाँ हैं|

गलती १. फरिश्तों ने मिटटी लाने से मना किया. इस का कोई प्रमाण कुरआन से दीजिए.

गलती २. ये 'अजाजील' नाम आप कहाँ से ले आये? कुरआन में इब्लीस का वर्णन है. और यह भी आपने गलत कहा है की वह फ़रिश्ता था. कुरआन तो स्पष्ट कहता हे कि इब्लीस जिन था [देखो सूरह १८: आयत ५०]

गलती ३. 'अजाजील ने कहा की अल्लाह आपने तो आपको छोड़ दुसरे को सिजदा करने को मना किया था' यह भी गलत है'. इब्लीस ने ऐसा कभी नहीं कहा. पंडित जी कृपया कुरआन से अपने दावों का प्रमाण भी दिया करें. यह सजदा सम्मान का प्रतीक था न कि इबादत का सजदा. वेदों में भी शब्द नमन (झुकना/सजदा) को ईश्वर के अलावा अन्य के लिए प्रयोग किया गया है. उदाहरण के लिए देखिये ऋग्वेद १०:३०:६

"जिस प्रकार युवतियें युवा पुरुष के प्रति नमती हैं.."

आपका प्रश्न तो वेदों पर भी आता है.

गलती ४. ये आप ने ठीक कहा की अल्लाह ने आदम को सारी वस्तुओं के नाम बताए. लेकिन आपत्ति करने से पहले इसका अर्थ तो समझ लेते. 'वस्तुओं के नाम सिखाना' प्रतीक है ज्ञान का. अर्थात आदम (मानवता) की विशेषता ज्ञान होगा. फरिश्तों ने एक शंका व्यक्त की थी कि क्या मनुष्य पृथ्वी पर बिगाड़ पैदा करे गा? उस शंका को दूर करने के लिए अल्लाह ने आदम को ज्ञान प्रदान किया. येही ज्ञान है जिसके कारण मनुष्य ने क्या क्या कारनामे नहीं किये हैं यहाँ तक कि इंसान चाँद पर भी पहुँच गया है. इस ज्ञान से इंसान ने हर वस्तु को अपने काबू में कर लिया.

हर वस्तु की अपनी विशेषता होती हे और अल्लाह ने इंसान को ज्ञान प्राप्त कर तरक्की करने की विशेषता दी है. इसी ज्ञान से वह अल्लाह को भी पहचानता है. इस घटना से अल्लाह ने हमें यह समझाया है कि फ़रिश्ते, जिन और इंसान उतना ही जान सकते हैं जितना अल्लाह ने उन्हें ज्ञान दिया है.

गलती ५. आप कहते हैं कि 'अज़ाजील (इब्लीस) को गुस्सा आना स्वाभाविक था'. यह तो सरासर गलत हे. इब्लीस ने आदम के सामने केवल घमंड के कारण सजदा नहीं किया. कृपया कुरआन को ध्यान से पढये. कुरआन कहता हे

قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَنْ تَسْجُدَ لِمَا خَلَقْتُ بِيَدَيَّ ۖ أَسْتَكْبَرْتَ أَمْ كُنْتَ مِنَ الْعَالِينَ

(अल्लाह ने) कहा, "ऐ इबलीस! तूझे किस चीज़ ने उसको सजदा करने से रोका जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया? क्या तूने घमंड किया, या तू कोई ऊँची हस्ती है?"

قَالَ أَنَا خَيْرٌ مِنْهُ ۖ خَلَقْتَنِي مِنْ نَارٍ وَخَلَقْتَهُ مِنْ طِينٍ

उसने कहा, "मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया और उसे मिट्टी से पैदा किया।"[सुरह साद ३८: आयत ७५-७६]

तो इससे सिद्ध होता है कि इब्लीस ने केवल घमंड के कारण अल्लाह की आज्ञा को नहीं माना. उसने अपने आप को दुसरे (आदम) से उच्च समझ लिया. इस लिए अल्लाह ने कोई पक्षपात नहीं किया. आपकी समझ का फेर है.

गलती ६. आप कहते हैं कि "अज़ाजील को नाम बताए बिना पुछा जाना कि अगर तुम सत्यवादी हो तो सभी चीज़ों के नाम बताओ"

आपक कृपया ये कुरान से प्रमाण दीजिये कि इब्लीस (आपका अज़ाजील) को कहाँ पुछा नाम बताओ? नाम तो फरिश्तों से पूछे गए इब्लीस से नहीं. लगता हे आपने कुरान ठीक से पढ़ा ही नहीं. आपने तो सारी घटना ही उलट पुलट बयान कि है.

अब में आपकी कोन कोन सी गलती निकालूँ ?

प्रश्न ३

उत्तर

अल्लाह के मार्ग पर रहने का अर्थ समझ लीजिये. जब इंसान अल्लाह के उपदेश का पालन करे गा वो गुमराह नहीं होगा. और जब अल्लाह के उपदेशों से मुंह मोड़ लेगा तो गुमराह होगा. यदि वो पश्चाताप करके अपनी भूल को सुधारना चाहे तो वह फिर से सीधे मार्ग पर लोट आएगा. यदि सीधे मार्ग पर जल्दी से न लोटे तो गुमराही बढ जाये गी.

आदम अल्लाह के रास्ते पर थे लेकिन क्षण भर के लिये इब्लीस के बहकावे में आगये. उन्हों ने उस क्षण में अल्लाह की चेतावनी को भुला दिया. लेकिन फिर अपनी गलती का एहसास हुआ और अल्लाह से क्षमा चाही.

قَالَا رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنْفُسَنَا وَإِنْ لَمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ

अर्थात दोनों (आदम और उनकी पत्नी) बोले, "हमारे रब! हमने अपने आप पर अत्याचार किया। अब यदि तूने हमें क्षमा न किया और हम पर दया न दर्शाई, फिर तो हम घाटा उठानेवालों में से होंगे।"[सूरह आराफ ७:आयत २३]

आप पूछते हैं कि "अल्लाह ने चोर को चोरी करने व गृहस्ती को सतर्क रहने को कहा, क्या यह काम अल्लाह की धोकेबाज़ी का नहीं रहा?"

पंडित जी आप अल्लाह की सृष्टि निर्माण योजना को समझे ही नहीं हैं. इबलीस की चोर से तुलना करना मूर्खता है. कुरान हमें यह बताता हे की हम इस दुनिया में परीक्षा से गुज़र रहे हैं.

الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا

"जिसने पैदा किया मृत्यु और जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममें कर्म की दृष्टि से कौन सबसे अच्छा है।" [सूरह मुल्क ६७; आयत २ ]

इस प्रसंग में इब्लीस के प्रभाव का क्षेत्र केवल इतना है कि वह मनुष्य को पाप की और निमंत्रण देता है. उस निमंत्रण को स्वीकार या अस्वीकार करना हम पर निर्भर है. कुरान हमें क़यामत के दिन इब्लीस के शब्दों की सुचना देता है. सुनिए

وَقَالَ الشَّيْطَانُ لَمَّا قُضِيَ الْأَمْرُ إِنَّ اللَّهَ وَعَدَكُمْ وَعْدَ الْحَقِّ وَوَعَدْتُكُمْ فَأَخْلَفْتُكُمْ ۖ وَمَا كَانَ لِيَ عَلَيْكُمْ مِنْ سُلْطَانٍ إِلَّا أَنْ دَعَوْتُكُمْ فَاسْتَجَبْتُمْ لِي ۖ فَلَا تَلُومُونِي وَلُومُوا أَنْفُسَكُمْ ۖ مَا أَنَا بِمُصْرِخِكُمْ وَمَا أَنْتُمْ بِمُصْرِخِيَّ ۖ إِنِّي كَفَرْتُ بِمَا أَشْرَكْتُمُونِ مِنْ قَبْلُ ۗ إِنَّ الظَّالِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ

"जब मामले का फ़ैसला हो चुकेगा तब शैतान कहेगा, "अल्लाह ने तो तुमसे सच्चा वादा किया था और मैंने भी तुमसे वादा किया था, फिर मैंने तो तुमसे सत्य के प्रतिकूल कहा था। और मेरा तो तुमपर कोई अधिकार नहीं था, सिवाय इसके कि मैंने तुम को (बुरे कामों की तरफ) बुलाया और तुमने मेरा कहा मान लिया; बल्कि अपने आप ही को मलामत करो, न मैं तुम्हारी फ़रियाद सुन सकता हूँ और न तुम मेरी फ़रियाद सुन सकते हो। पहले जो तुमने सहभागी ठहराया था, मैं उससे विरक्त हूँ।" निश्चय ही अत्याचारियों के लिए दुखदायिनी यातना है" [सुरह इब्राहीम १४; आयत २२]

पंडित जी, अगर में आपके प्रश्न को आप पर उलट दूं की इश्वर ने ज़हर को क्यों पैदा किया, तो आपका उत्तर क्या होगा? क्या आपका इश्वर धोकेबाज़ है?

वैदिक ईश्वर के कारनामे

यजुर्वेद अध्याय ३०, मंत्र ५ में लिखा हे कि लोगों को विभिन्न धर्मों और व्यवसायों में ईश्वर ने पैदा किया. जहां ईश्वर ने अच्छे व्यवसाय पैदा किये वहीं बुरे व्यवसाय भी पैदा किये. उसने जहां ब्रह्म॑णे ब्राह्म॒णं (वेद के लिए ब्रह्मण को पैदा किया), वहीं कामा॑य पुँश्च॒लूम (समागम के लिए व्यभिचारी को पैदा किया). जिस प्रकार ब्रह्मण का धर्म वेद हे, क्षत्र्य का धर्म नीति की रक्षा, वैश्य का धर्म व्यापार, शूद्र का धर्म सेवा है, इसी प्रकार एक व्यभिचारी का धर्म व्यभिचार है. दुनिया में जिस प्रकार हर कोई व्यक्ति अपना अपना धर्म फेला रहा है, इसी प्रकार, वो भी अपना धर्म फेला रही है, और अन्य लोगों के गुमराह होने का कारण बन रही है.

पंडित जी अब आप वैदिक ईश्वर को भी धोकेबाज़ कहें गे?

आप कहते हैं
"अवश्य कुरान का तथा मुसलमानों का अल्लाह तो धोकेबाज़ हे ही. इसका प्रमाण कुरान में ही मोजूद हे, देखें -

وَمَكَرُوا وَمَكَرَ اللَّهُ ۖ وَاللَّهُ خَيْرُ الْمَاكِرِينَ

अर्थ- मकर करते हैं वह, मकर करता हूँ में और में अच्छा मकर करने वाला हूँ.

मकर माने धोका. जो अल्लाह इंसान के साथ धोका करता हे, वह अल्लाह कोई अच्छा अल्लाह नहीं होसकता."

पंडित जी आपने तो कुरान की इस आयत का अनुवाद ही बड़ा धोकेवाला किया है.

किसी वाक्य का अर्थ उसके प्रसंग के अनुसार करना चाहिए. कुरान ३:५४ के प्रसंग में शब्द 'मकर' का अर्थ है 'योजना' या 'तदबीर'. इसी कारण कुरान के सारे अनुवादकों ने (गैर मुस्लिम अनुवादकों ने भी) इसके यही अर्थ किये हैं. अंग्रेजी अनुवादकों ने भी इसके अर्थ 'plan' या 'plot' के किये हैं. आयत का अर्थ यह हुआ की यहूदियों ने हज़रत ईसा को कष्ट पहुँचाने की खुफिया योजना बनायीं और अल्लाह ने उनको बचाने की योजना बनायीं और निसंदेह अल्लाह की योजना सब पर भारी है.

अरबी में यह शब्द कोई बुरा अर्थ नहीं रखता लेकिन हिंदी में बड़े घृणित अर्थों में बोला जाता हे जिसके कारण आपने आपत्ति की है.

वेद का धोकेबाज़ ईश्वर

अपने शायद वेदों का अध्यन नहीं किया है. ऋग्वेद में अनेक जगह इन्द्र को मायी (धोकेबाज़) कहा गया हे. उदाहरण के तोर पर देखिये ऋग्वेद १:११:७

मायाभिरिन्द्र मायिनं तवं शुष्णमवातिरः |
विदुष टे तस्य मेधिरास्तेषां शरवांस्युत तिर ||

"हे इन्द्रदेव ! अपनी माया द्वारा आपने 'शुषण' को पराजित किया. जो बुद्धिमान आपकी इस माया को जानते हैं, उन्हें यश और बल देकर वृद्धि प्रदान करें."

इस मंत्र का भावार्थ स्वामी दयानंद जी इस प्रकार करते हैं.

"बुद्धिमान मनुष्यों को ईश्वर आगया देता है कि- साम, दाम, दंड और भेद की युक्ति से दुष्ट और शत्रु जनों क़ी निवृत्ति करके चक्रवर्ति राज्य क़ी यथावत उन्नति करनी चाहिए"

पंडित जी, साम, दाम, दंड और भेद को तो आप जानते ही होंगे.

साम : बहलाना फुसलाना
दाम : धन देकर चुप कराना
दंड : यदि बहलाने फुसलाने से न माने तो ताड़ना करना
भेद : फूट डालना

इसके अतिरिक्त ऋग्वेद ४:१६:९ में दयानादं जी नें भी अपने भाष्य में 'मायावान' का अनुवाद मक्कार किया है. पंडित जयदेव शर्मा (आर्य समाजी) ने अपने ऋग्वेद भाष्य में 'मायावान' का अनुवाद कुटिल मायावी किया है. तो सिद्ध हो गया कि वैदिक ईश्वर मायी अर्थात धोकेबाज़ है.

पंडित जी आपके शब्दों में कहना चाहिए, "जो ईश्वर इंसान के साथ धोका करता है या इंसानों को धोके का उपदेश करता है, वह ईश्वर कोई अच्छा ईश्वर नहीं होसकता."

प्रश्न ४

उत्तर

हजरत नूह ने अल्लाह से दुआ मांगी की दुनिया वालों को मेरे दीन में करदे, अल्लाह ने कुबूल नहीं की. जब नाश होने का दुआ मांगी तो अल्लाह ने कुबूल की. इसका प्रमाण कृपया कुरान से दीजिये कि ऐसी दुआ कहाँ मांगी?

أَفَلَمْ يَاْيْئَسِ الَّذِينَ آَمَنُوا أَنْ لَوْ يَشَاءُ اللَّهُ لَهَدَى النَّاسَ جَمِيعًا

यदि अल्लाह चाहता तो सारे ही मनुष्यों को सीधे मार्ग पर लगा देता? [सुरह राद १३; आयत ३१]

यह सही अनुवाद है. इसका अर्थ आपने गलत किया है. अल्लाह ने सारे लोगों को मोहलत दी है एक निर्धारित समय तक. ये हम सब की परीक्षा है जिसमें हमें सत्य स्वीकार या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता है. जो व्यक्ती चाहे तो माने और जो चाहे न माने. अब अल्लाह के चाहने को आप मनुष्य के चाहने के सामान मत समझये. यहाँ तो अल्लाह एक सिद्धांत बता रहे हैं कि यदि वह चाहते तो सारे इंसान आस्तिक बनजाते. उदाहरण के लिए ये धरती देखिये जो अल्लाह के निर्धारित नियमों के अनुसार अपना चक्कर लगा रही है. क्या धरती को ये स्वतंत्रता है कि वह अपने ग्रहपथ से बाहर निकले? नहीं. क्योंकि धरती में हमारी तरह स्वतंत्र इच्छा (free will) नहीं है. तो यही बात हमें अल्लाह समझा रहे हैं. अल्लाह को हिन्दू मुस्लिम् लड़ाई देखना पसंद नहीं, लेकिन यह तो हमारी मूर्खता है कि हम लड़ते हैं. क्या आपके वैदिक ईश्वर को लड़ाई पसंद है जो वेदों के हर प्रष्ट पर लड़ाई का कोई न कोई मंत्र है?

अब सूरह नूह ७१; आयत २६-२८ पर आते हैं जिसका में सही अनुवाद आपके सामने कर दूं क्योंकि आपको गलत तर्जुमा करने की आदत है

وَقَالَ نُوحٌ رَبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْأَرْضِ مِنَ الْكَافِرِينَ دَيَّارًا

और नूह ने कहा, "ऐ मेरे रब! धरती पर इनकार करनेवालों में से किसी बसनेवाले को न छोड

إِنَّكَ إِنْ تَذَرْهُمْ يُضِلُّوا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوا إِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا

यदि तू उन्हें छोड़ देगा तो वे तेरे बन्दों को पथभ्रष्ट कर देंगे और वे दुराचारियों और बड़े अधर्मियों को ही जन्म देंगे

رَبِّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَنْ دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا تَبَارًا

ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मेरे माँ-बाप को भी और हर उस व्यक्ति को भी जो मेरे घर में ईमानवाला बन कर दाख़िल हुआ और (सामान्य) ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को भी (क्षमा कर दे), और ज़ालिमों के विनाश को ही बढ़ा।"

पंडित जी, ये प्रार्थना तो उन पापियों को नष्ट करने के लिए थी जिन का पाप हद से बढ़ गया था और ईमानवालों (अर्थात जो भले लोग हों) को बचाने की प्रार्थना है. इसमें आपको स्वार्थ कैसे नज़र आया? यदि अल्लाह उन पापी काफिरों (अल्लाह के भले मार्ग पर न चलने वाले) को नष्ट नहीं करता तो वे दुनिया में पाप को फैलाते जैसा कि आयत २७ से ज़ाहिर है. दुराचारियों को नष्ट करने और सदाचारियों की रक्षा करने की प्राथना करना कोनसी स्वार्थपरता है?

वेदों की स्वार्थी प्रार्थनाएं

किं ते कर्ण्वन्ति कीकटेषु गावो नाशिरं दुह्रे न तपन्तिघर्मम |
आ नो भर परमगन्दस्य वेदो नैचाशाखं मघवन्रन्धया नः ||

हे इन्द्र, अनार्य देशों के कीकट वासियों की गौओं का तुम्हे क्या लाभ है? उनका दूध सोम में मिला कर तुम पी नहीं सकते. उन गौओं को यहाँ लाओ. परमगन्द (उनके राजा), की संपत्ति हमारे पास आजाए. नीच वंश वालों का धन हमें दो. [ऋग्वेद ३/५३/१४]

पंडित जी, ये अनार्यों के धन और संपत्ति को लूटने की कैसी प्राथना वेदों में की गई है?

'कीकट' शब्द की व्याख्या करते हुए यास्क आचार्य ने अपनी पुस्तक 'निरुक्त' में लिखा है,

कीकटा नाम देशो अनार्यनिवासः [निरुक्त ६/३२]

अर्थात कीकट वह देश है जहां अनार्यों का निवास है. इस पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध आर्यसमाजी विद्वान पं. राजाराम शास्त्री ने लिखा है- "कीकट अनार्य जाती थी, जो बिहार में कभी रहती थी, जिस के नाम पर बिहार का नाम कीकट है." (निरुक्त, पृ. ३२१, १९१४ ई.). स्वामी दयानंद ने 'कीकटाः' का अर्थ करते हुए लिखा है-

"अनार्य के देश में रहने वाले मलेच्छ "

तो पंडित जी अब आप ही फेसला कीजिये कि ये दूसरों का धन लूटने की स्वार्थी प्रार्थना है या नहीं. मैंने केवल एक उदाहरण दिया अन्यथा ऐसी स्वार्थी प्रार्थनाओं के अतिरिक्त वेदों में कुछ और है भी नहीं.

प्रश्न ५

उत्तर

पंडित जी, आपके इस प्रश्न का न तो सर है न पैर. जिस आयत पर आप प्रश्न कर रहे हैं ऐसी पवित्र शिक्षा आपको सारे वैदिक शास्त्रों में नहीं मिले गी. आयत तो आपने कुछ ठीक लिखी है लेकिन इस से गलत बात साबित करने की कोशिश की है. सुनिए आयत का सही अनुवाद-

وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَ لَكُمْ مِنْ أَنْفُسِكُمْ أَزْوَاجًا لِتَسْكُنُوا إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُمْ مَوَدَّةً وَرَحْمَةً

"और यह भी उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी ही सहजाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए, ताकि तुम उसके पास शान्ति प्राप्त करो। और उसने तुम्हारे बीच प्रेंम और दयालुता पैदा की" [सूरह रूम ३०; आयत २१]

निश्चय, पति पत्नी के बीच में प्रेम और दयालुता अल्लाह ने ही डाली हैं. लेकिन उस प्रेम और हमदर्दी की क़दर करना हम पर निर्भर है. अल्लाह ने मां और बच्चे के बीच में भी अपार प्रेम डाला है, लेकिन किसी समय मां को अपने बच्चे के साथ दृढ़ता से पेश आना पड़ता है जब बच्चा गलती करता है. मां और बच्चे का रिश्ता एक प्राकृतिक रिश्ता है, लेकिन पति-पत्नी का रिश्ता बनाया जाता है. आप अपनी ही मिसाल लीजिये. आज आप आर्य समाज के सदस्य हैं. हो सकता है कि कल आप इस्लाम के अनुगामी बन जाएं.

तो निश्चय ही पति-पत्नी के रिश्ते में अल्लाह ने प्रेम और हमदर्दी डाली होती है, परन्तु केवल वही इस प्रेम और हमदर्दी का अनुभव कर सकते हैं जो एक दुसरे से संतुष्ट हों और एक दुसरे के स्वभाव को समझते हों. इस आयत का तलाक़ के विधान के साथ कोई सम्बन्ध नहीं.

तलाक़ का विधान अवश्य कुरान में है. कुरान में तो एक पूरा अध्याय तलाक़ के विधान पर है जिसको सूरह तलाक़ (सूरह ६५) कहा जाता है. तलाक़ का विधान बिलकुल प्राकृतिक है. यदि पति-पत्नी के बीच में अन्य कारण प्रेम और हमदर्दी पर हावी होजाएं तो तलाक़ बिलकुल प्राकृतिक है. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि किसी भी कारण के बगैर पति अपनी पत्नी को तलाक़ दे. कुरान के अनुसार तलाक़ एक गंभीर मामला है जो गंभीर स्थितिओं में पेश आता है. मगर इस अत्यंत भावुक मामले में भी शालीनता और सद्व्यवहार पर कायम रहने का हुक्म दिया गया है.

जिस आयत को आपने अधूरा पेश किया है और उसका अनुवाद भी सरासर गलत किया है, पहले में वो पाठकों के सामने रख दूं-

الطَّلَاقُ مَرَّتَانِ ۖ فَإِمْسَاكٌ بِمَعْرُوفٍ أَوْ تَسْرِيحٌ بِإِحْسَانٍ ۗ وَلَا يَحِلُّ لَكُمْ أَنْ تَأْخُذُوا مِمَّا آتَيْتُمُوهُنَّ شَيْئًا إِلَّا أَنْ يَخَافَا أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ ۖ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا فِيمَا افْتَدَتْ بِهِ ۗ تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ فَلَا تَعْتَدُوهَا ۚ وَمَنْ يَتَعَدَّ حُدُودَ اللَّهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ [٢:٢٢٩]

"तलाक़ दो बार है। फिर सामान्य नियम के अनुसार (स्त्री को) रोक लिया जाए या भले तरीक़े से विदा कर दिया जाए। और तुम्हारे लिए वैध नहीं है कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो, उसमें से कुछ ले लो, सिवाय इस स्थिति के कि दोनों को डर हो कि अल्लाह की (निर्धारित) सीमाओं पर क़ायम न रह सकेंगे तो यदि तुमको यह डर हो कि वे अल्लाह की सीमाओ पर क़ायम न रहेंगे तो स्त्री जो कुछ देकर छुटकारा प्राप्त करना चाहे उसमें उन दोनो के लिए कोई गुनाह नहीं। ये अल्लाह की सीमाएँ है। अतः इनका उल्लंघन न करो। और जो कोई अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो ऐसे लोग अत्याचारी है" [सूरह बक़रह; आयत 229]

पंडित जी, आपने जो प्रश्न इस आयत पर किया है वैसा कुछ भी इस आयत में है ही नहीं. उल्टा इस आयत में तलाक़ देने का सही ढंग सिखाया गया है और वह ये है कि पत्नी की पवित्रता की अवस्था में पति एक तलाक़ दे. इसके बाद तीन मासिक धर्म (three menstrual cycles ), जो इद्दत का समय है, बीतने पर पति-पत्नी का सम्बन्ध टूट जाएगा और वही स्त्री किसी दुसरे से विवाह कर सकेगी.

यह एक वापस ली जाने वाई तलाक़ है. ऐसी तलाक़ केवल दो बार हो सकती है, जिस का ढंग यह है-

१. यदि पति तलाक़ दे तो इद्दत (तीन मासिक धर्म अर्थात तीन महीने) के अन्दर रुजूअ हो सकता है. यदि इद्दत बीत जाए और रुजू न करे तो नए महर के साथ ही नया निकाह हो सकता है. यदि वह इस निकाह के बाद फिर उसे तलाक़ दे दे तो निश्चित इद्दत के अन्दर वह रुजूअ कर सकता है. यदि यह इद्दत भी बीत जाए तथा रुजू न करे तो नए महर के साथ ही नया विवाह हो सकता है.

२. परन्तु यदि फिर तीसरी बार तलाक़ दे तो यह तलाक़ अंतिम होगी. अब वह इद्दत के अन्दर रुजूअ नहीं कर सकता और ना ही इद्दत के बाद नए महर के साथ नया विवाह हो सकता है. हाँ, यदि वह स्त्री किसी अन्य पुरुष से विवाह करले और वह पति स्वयं मर जाए या उसे तलाक़ दे दे, तो ही पहले पति से फिर विवाह संभव है और वो भी ज़बरदस्ती नहीं. लेकिन यहाँ एक बात का ध्यान दें कि दूसरा पति किसी निर्धारित योजना के अधीन स्त्री को तलाक़ दे ताकी वो स्त्री पहले पति से विवाह कर सके, यह इस्लाम में हराम है और हज्रार मुहम्मद (सल्ल.) ने फरमाया है कि ऐसे पुरुष पर अल्लाह का अभिशाप है. जिस हलाला की आप बात कर रहे हैं वो इस्लाम में जायज़ है ही नहीं.

यहाँ प्रश्न ये है कि जो पति अपनी पत्नी को परेशान करने के लिए तीन बार तलाक दे चूका ऐसे पुरुष से वह स्त्री फिर से विवाह क्यों करे गी? कुरान तो पहले है बता चूका है कि पति-पत्नी का रिश्ता पवित्र रिश्ता होता है जिस में प्रेम और हमदर्दी हो. अगर पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती तो पहले मामला बात चीत से हल करना चाहिए. यदि समस्या हल हो जाए तो ठीक और यदि लगे कि तलाक़ के सिवा कोई और रास्ता नहीं तब ही उसका उपयोग करना चाहिए. लिहाज़ा हलाला जैसी बुरी चीज़ की कोई अवधारणा इस्लाम में नहीं. ये केवल इंडिया, पाकिस्तान और बंगलादेश में मुसलमानों की अज्ञानता की समस्या है. इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं.

३. इस आयत ने स्पष्ट कर दिया कि तलाक़ हमेशा अहसन (भले तरीक़े से) हो. स्त्री को जो महर दिया हो उसको वापस नहीं लेना चाहिए क्योंकि उस पर स्त्री का अधिकार है. यदि पति अपनी पत्नी को परेशान करने के लिए तलाक़ के हरबे इस्तेमाल कर रहा हो तो पत्नी को चाहिए कि वह न्यायाले के पास जाए और सामान्य नियम के अनुसार उस पति से अलग हो जाए.

हिन्दू धर्म और तलाक़

हिन्दू विवाह अधिनियम,१९५५ के अनुसार विशेष स्थितियों में, यथा दुष्ट स्वभाव, मूर्ख, व्यभिचारी, नामर्द होने पर स्त्री अपने पति को तलाक़ दे सकती है. लेकिन हिन्दू धर्म में तलाक़ का कोई प्रावधान नहीं है. पति चाहे दुष्ट स्वभाव वाला, मूर्ख, और रोगी हो तब भी स्त्री नहीं छोड़ सकती. उसे अपने ही पति के साथ जीना और मरना है.

नियोग प्रथा

पंडित जी आप ने हलाला की गैर इस्लामी अवधारणा पर तो प्रश्न किया लेकिन अपने वैदिक धर्म की मूल शिक्षा 'नियोग' को भूल गए. नियोग के नाम पर अपनी पत्नी को अन्य पुरुषों से बे आबरू कराना, ये आपकी वैदिक सभ्यता है जिसे आप इस्लाम पर लादने का प्रयास कर रहे हैं. नियोग प्रथा के अनुसार नारी को न केवल निम्न और भोग की वस्तु और नाश्ते की प्लेट समझा गया है बल्कि बच्चे पैदा करने की मशीन बनाया गया है. और 'नियोग' का कारण भी क्या निराला है! केवल एक पुरुष संतान उत्पन्न करने के लिए 'नियोग' का घटिया प्रावधान वैदिक धर्म में है. नियोग पर मेरी टिपण्णी के लिए देखिये प्रश्न १५ का उत्तर.

प्रश्न ६

उत्तर

यहाँ आप काफिरों को क़त्ल करने पर आपत्ति कर रहे हैं, लेकिन आपने तो उन आयातों का ऐतिहासिक संदर्भ समझा ही नहीं. जो आयत आप पेश कर रहे हैं उसका आपने अनुवाद गलत किया है और हवाला भी गलत है. सही हवाला सूरह बक़रह की आयत १९३ है जिसका सही अनुवाद ये है,

وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّهِ ۖ فَإِنِ انْتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ

अर्थात तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं [सूरह बक़रह; आयत १९३ और सूरह अन्फाल; आयत ३९]

पंडित जी, उस व्यक्ति को क्या कहें जो एक वाक्य को उसके प्रसंग में न देखे. इस आयत का सही अर्थ जानने के लिए आयत १९१ से पढ़िए

وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ الَّذِينَ يُقَاتِلُونَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ

और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता

وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُمْ مِنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ ۚ وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِنْدَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ ۖ فَإِنْ قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ ۗ كَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ

और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उत्पीड़न) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है

فَإِنِ انْتَهَوْا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ

फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, अत्यन्त दयावान है

وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّهِ ۖ فَإِنِ انْتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ

तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं

इन आयातों से पता चलता हे कि यह युद्ध धार्मिक अत्याचार का अंत करने के लिए लड़ा जारहा था. क्योंकि आयत १९१ और १९२ में स्पष्ट लिखा है कि यह लड़ाई केवल उनसे थी जो मुसलमानों पर उनके धर्म के कारण अत्याचार कर रहे थे. मक्का में १३ वर्ष तक मुसलमान मूर्ति पूजकों का अत्याचार सहते रहे और उसके बाद उन्हें वहाँ से निकल कर मदीना जाना पड़ा. मदीना में आने के बाद भी मूर्ति पूजकों ने उन्हें शान्ति से बेठने नहीं दिया, और युद्ध के लिए मजबूर किया. इसी प्रसंग में आयत १९३ को देखना चाहिए. इस आयत में अरबी शब्द 'फ़ितना' का अर्थ 'धार्मिक अत्याचार' है जिसका अंत इस्लाम ने किया. 'अल्लाह के लिए दीन होजाने' का अर्थ यह है कि मज़हबी आज़ादी (धार्मिक स्वतंत्रता) होजाए. तो इस आयत पर आपके आक्षेप का कोई आधार नहीं है.

इसके अतिरिक्त कुरान में जो भी आयतें काफिरों को मारने के लिए आयीं हैं वह सब युद्ध की स्थितियों से सम्बंधित आयतें हैं. इसकी व्याख्या मैंने प्रश्न १ के उत्तर में करदी है.

वेदों की निर्दयी शिक्षा

वेदों के वचन भी सुनिए

"धर्म के द्वेषी शत्रुओं को निरंतर जलाइए. नीची दशा में करके सूखे काठ के समान जलाइए." [यजुर्वेद १३/१२]

स्वामी दयानंद सरस्वती ऋग्वेद १/७/४ के भावार्थ में लिखते हैं

"परमेश्वर का यह स्वभाव है कि युद्ध करने वाले धर्मात्मा पुरुषों पर अपनी कृपा करता है और आलसियों पर नहीं. जो मनुष्य जितेन्द्रिय विद्वान आलस्य को छोड़े हुए बड़े बड़े युद्धों को जीत के प्रजा को निरंतर पालन करते हैं, वो ही महाभाग्य को प्राप्त होके सुखी रहते हैं."

क्या आपके ईश्वर के जिम्मे यही काम रह गया है कि लोगों को एक दुसरे से लड़ने का आदेश देता रहे? तो उस ईश्वर का भक्त कैसा होगा? प्रमाण है बोद्धों, जैनियों और अन्य नास्तिक समुदायों पर हिन्दुओं के अत्याचार जो इतिहास से साबित होते हैं. इन अत्याचारों के बारे में स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक 'सत्यार्थ प्रकाश' में आदि शंकराचार्य के सन्दर्भ में संक्षेप में लिखा है.

"दस वर्ष के भीतर सर्वत्र आर्यावर्त में शंकराचार्य ने घूम कर जैनियों का खंडन और वेदों का मण्डन किया. परन्तु शंकराचार्य के समय में जैन विध्वंस अर्थात जितनी मूर्तियाँ जैनियों की निकलती हैं. वे शंकराचार्य के समय में टूटी थीं और जो बिना टूटी निकलती हैं वे जैनियों ने भूमि में गाड दी थीं की तोड़ी न जाएँ. वे अब तक कहीं भूमि में से निकलती हैं." [सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास ११]

पंडित जी देखिये जैनियों पर कितना अत्याचार किया था हिन्दुओं ने. उनकी मूर्तियाँ भी तोड़ डाली थीं.

प्रश्न ७

उत्तर

إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَىٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ

निस्संदेह नमाज़ अश्लीलता और बुराई से रोकती है। [सूरह अन्कबूत २९; आयत ४५]

आप ये प्रश्न कर रहे हैं कि यदि नमाज़ बुराई से रोकती है तो नमाज़ पढने वाले ही बुराई क्यों कर रहे हैं? नमाज़ से यहाँ केवल उसका प्रकट रूप तात्पर्य नहीं है. बल्कि नमाज़ की आंतरिक भावना तात्पर्य है. जो व्यक्ति हकीकी नमाज़ पढ़ रहा हो, जिस में वो पूरे ध्यान के साथ अपने आप को अल्लाह के सामने महसूस कर रहा हो, वाही वास्तविक नमाज़ होगी. जो व्यक्ति नमाज़ ध्यान से नहीं पढ़ते उनके बारे में तो कुरान स्पष्ट कहता है कि वो नमाज़ अल्लाह कुबूल नहीं करते. सुनिए-

فَوَيْلٌ لِلْمُصَلِّينَ

अतः तबाही है उन नमाज़ियों के लिए,

الَّذِينَ هُمْ عَنْ صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ

जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं, [सूरह माऊन १०७; आयत ४-५ ]

इस से सिद्ध होता है कि जो व्यक्ति नमाज़ पढ़ के भी बुराई करे वो वास्तव में केवल प्रकट रूप से नमाज़ पढता है, आतंरिक भावना से नहीं.

प्रश्न ८

उत्तर

ये एक आपका निराला प्रश्न है. मुझे तो इसका उत्तर देते हुए भी शर्मिंदगी हो रही है. कुरान में नरक से मुक्ति और स्वर्ग की प्राप्ति के ४ सिद्धांत बताये गए हैं. जो व्यक्ति इस मापदंड पर पूरा उतरे गा, वही नरक से बच जाए गा. कुरान में आता है-

وَالْعَصْرِ

गवाह है गुज़रता समय

إِنَّ الْإِنْسَانَ لَفِي خُسْرٍ

कि वास्तव में मनुष्य घाटे में है,

إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَتَوَاصَوْا بِالْحَقِّ وَتَوَاصَوْا بِالصَّبْرِ

सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए और एक-दूसरे को सत्य की ताकीद की, और एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की. [कूरह अल-असर १०३; आयत १-४]

जो व्यक्ति भी इस कसौटी पर पूरा उतरे गा वह नरक से मुक्ति प्राप्त करके स्वर्ग प्राप्त करेगा. आपको अरब वालों की खुशहाली से क्यूँ जलन हो रही है? इस खुशहाली को ऐश कहना आपकी मूर्खता है. यदि कोई अरबी हकीकत में ऐश और विलासिता में अल्लाह से गाफिल होगया हो तो वह निश्चित रूप से उसका दंड भूगे गा. मगर सारी अरबी जनता को एक ही लाठी से हांकना आपकी नस्लवादी मानसिकता को व्यक्त करता है.

इसके अतिरिक्त आपका ये कहना कि कुरान में अल्लाह ने कहा कि मुसलमानों पर जहन्नुम की आग हराम है, इसका प्रमाण दिखाइये? कुरान में केवल नाम के मुसलमान को जहन्नुम से मुक्ति नहीं दी गयी है, बल्कि एक सच्चे मुसलमान को, जो अच्छे कर्म करता हो और दूसरों को सत्य की ताकीद करता हो, और दूसरों को धैर्य की ताकीद करता हो. इन बातों में कोई विरोध नहीं.

प्रश्न ९

उत्तर

पंडित जी, यदि आप ऋग्वेद के प्रथम मन्त्र को देख लेते तो यह बेजा आपत्ति नहीं करते. ध्यान से सुनिए-

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवं रत्वीजम |
होतारं रत्नधातमम ||

"हम लोग उस अग्नि की प्रशंसा करते हैं जो पुरोहित है, यज्ञ का देवता, समस्त तत्वों का पैदा करने वाला, और याजकों को रत्नों से विभूषित करने वाला है."

बताइये, यदि अग्नि से, आपके के अनुसार, ईश्वर ही तात्पर्य है और वेद भी ईश्वर की वाणी है, तो इस वाक्य का बोलने वाला कोन है?

आप असल में ईश्वरीय पुस्तकों कि जुबान/भाषा से अपरिचित हैं. ईश्वरीय किताबों का मुहावरा और कलाम (भाषा) कि शैली कई प्रकार की होती है. कभी तो ईश्वर स्वयं बात कहने के रूप में अपना आदेश स्पष्ट करता है (उत्तम पुरुष) और कभी गायब से. कभी कोई ऐसे वाक्य जो दुआ या प्राथना के रूप में बन्दों को सिखाना अपेक्षित हो उसे बन्दे की जुबान से व्यक्त कराया जाता है.

सूरह फैतिहा या बिस्मिल्लाह भी इसी किस्म से है. अर्थात ये ऐसे शब्द हैं जो ईश्वर बन्दों को सिखातें हैं. तो कुरान कलामुल्लाह ही है. आप कलाम कि शैली को न समझने के कारण ऐसी आपत्ति कर रहे हैं.

क्या वेद ईश्वर् की वाणी है?

आर्य समाज का यह दावा कि वेद ईश्वर् की वाणी है, या एक इल्हामी ग्रन्थ है, पूरी तरह से गलत है. वेदों का अध्यन करने से पता चलता है कि वे ऋषियों द्वारा बनाये गए हैं. इस विषय का पूरा विवरण करना यहाँ संभव नहीं है, लेकिन में कुछ प्रमाण आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ-

तैतीरीय ब्रह्मण २/८/८/५ में लिखा है

अर्थात "बुद्धिमान ऋषि मन्त्रों के बनाने वाले हैं."

इसके अतिरिक्त इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं समयसमय पर वेदों के नए नए मंत्र बनते रहे रहे हैं और वे पहले बने संग्रहों (संहिताओं अथवा वेदों) में मिलाये जाते रहे हैं. खुद वेदों में ही इस बात के प्रमाण मिलते हैं-

१. ऋग्वेद १/१०९/२

अथा सोमस्य परयती युवभ्यामिन्द्राग्नी सतोमं जनयामि नव्यम ||

अर्थात "हे इन्द्र और अग्नि, तुम्हारे सोम्प्रदानकाल में पठनीय एक नया स्तोत्र रचता हूँ."

२. ऋग्वेद ४/१६/२१

अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया

अर्थात "हे हरि विशिष्ठ इन्द्र, हम तुम्हारे लिए नए स्तोत्र बनाते हैं.

३. ऋग्वेद ७/२२/९

ये च पूर्व रषयो ये च नूत्ना इन्द्र बरह्माणि जनयन्त विप्राः |

अर्थात "हे इन्द्रदेव, प्राचीन एवं नवीन ऋषियों द्वारा रचे गए स्तोत्रों से स्तुत्य होकर आपने जिस प्रकार उनका कल्याण किया, वैसे ही हम स्तोताओं का मित्रवत कल्याण करें."

स्पष्ट है कि इन नए स्तोत्रों व मन्त्रों के रचयित साधारण मानव थे, जिन्होंने पूर्वजों द्वारा रचे मन्त्रों के खो जाने पर या उनके अप्रभावकारी सिद्ध हों पर या उन्हें परिष्कृत करने या अपनी नयी रचना रचने के उद्देश से समयसमय पर नए मंत्र रचे.

इसलिए वेद सर्वज्ञ परमात्मा की रचना सिद्ध नहीं होते.

प्रश्न १०

उत्तर

आपने जो हदीस पेश की है उसमें तो लड़ाई की कोई बात ही नहीं कही गयी है. आपने इस बड़ी स्पष्ट हदीस पर अनावश्यक आपत्ति की है. शायद इसमें 'जिहाद' का शब्द देखकर आपने यह समझ् लिया कि यहाँ दुसरे लोगों से लड़ाई को सब से बड़ा काम कहा गया है. ये केवल आपकी अज्ञानता है कि आप जिहाद के सही अर्थ को नहीं समझे.

जिहाद का शाब्दिक अर्थ 'संघर्ष' है. इस अर्थ को यदि आपकी दी हुई हदीस में अपनाएं तो हदस का अर्थ ये हुआ कि अल्लाह की राह में 'संघर्ष' करना सबसे बड़ा काम है. इसपर आपको क्या आपत्ति है? क्या आप अपने धर्म के प्रचार में संघर्ष नहीं करते? क्या आप अपनी सोच के अनुसार ईश्वर के मार्ग में संघर्ष नहीं करते? अल्लाह का मार्ग तो एक पवित्र मार्ग है. इस मार्ग के प्रचार में और बुरे मार्ग की निंदा में तो हर ज़माने में संघर्ष करना पड़ता है. क्या आपको ये भी मालूम नहीं, जो आपने इसकी तुलना लड़ाई से की?

इसकी तुलना आप श्री कृष्ण के उस उपदेश से कीजिये जब उन्होंने अर्जुन से कहा-

"हे पार्थ, भाग्यवान क्षत्रियगण ही स्वर्ग के खुले द्वार के सामने ऐसे युद्ध के अवसरको अनायास प्राप्त करते हैं. दूसरी और, यदि तुम धर्मयुद्ध नहीं करोगे, तो स्वधर्म एवं कीर्ति को खोकर पाप का अर्जन करोगे." [श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय २; श्लोक ३२-३३]

कहिये पंडित जी, क्या कृष्ण लड़ाकू है, जो दुनिया वालों को लड़ाना चाहते हैं?

आदरनिये पाठको, नीचे मेने महेंद्र पाल जी का एक विडियो रखा है, जिस में वे हिन्दुओं को श्री कृष्ण के यही वाक्य सुना कर लड़ने पर उकसा रहे हैं. आप ही फेसला कीजिये कि कोन लड़ाकू है.

प्रश्न ११



उत्तर

ऐसी कोई हदीस नही जिसमें ये कहा गया हो कि गैर मुस्लिम की अर्थी देखने के समय उसे हमेशा के लिए जहन्नुम की आग में दाल देने की प्रार्थना की जाए. ये कोरा झूठ है. आपने हदीस का सही हवाला भी नहीं दिया है. इस कारण आपका प्रश्न ही बे बुनियाद है. यदि आपने हदीसों का अध्यन किया होता तो आपको ज्ञान होता कि एक गैर मुस्लिम की अर्थी (जनाज़ा) देखते समय पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) ने क्या किया था. सुनिए-

النبي صلى الله عليه وسلم مرت به جنازة فقام فقيل له إنها جنازة يهودي‏.‏ فقال ‏" أليست نفسا" ....إذا رأيتم الجنازة فقوموا

"एक बार पैगम्बर (सल्ल.) के सामने से एक अर्थी पारित हुई तो आप (सल्ल.) खड़े होगये. आपसे कहा गया कि ये तो एक यहूदी की अर्थी है. पैगम्बर (सल्ल.) ने फरमाया, "क्या यहूदी इंसान नहीं? जब भी तुम लोग जनाज़े को देखा करो तो खड़े हो जाया करो." [सही बुखारी; किताबुल जनाइज़ २३; हदीस ३८९ और ३९०]

अल्लाह ने कोई भेद-भाव पैदा नहीं किया. कुरान तो स्पष्ट कहता है.

يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُمْ مِنْ ذَكَرٍ وَأُنْثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا ۚ إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِنْدَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ

"ऐ लोगो! हमने तुम्हें पुरुष और स्त्री से पैदा किया और तुम्हें कई दलों तथा वंशों में विभाजित कर दिया है, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचान सको। वास्तव में तुममें से अल्लाह के निकट सत्कार के अधिक योग्य वही है, जो सबसे बढकर संयमी है। निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला ह." [सूरह हुजुरात ४९; आयत १३]

इस आयत से ये सिद्ध होता है कि जातियां एवं संतति केवल परिचय के लिए हैं. जो व्यक्ति उन्हें गर्व तथा स्वाभिमान का साधन बनाता है, वह इस्लाम के विरुद्ध आचरण करता है.

वैदिक ईश्वर का भेद-भाव

विश्व के धर्मों में हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिस में सामाजिक भेद-भाव के बीज शुरू से ही विद्यमान रहे हैं. हिन्दू धर्म सामाजिक भेद भाव को न केवल धर्म द्वारा अनुमोदित करता है, बल्कि इस धर्म का प्रारंभ ही भेद भाव के पाठ से होता है. हिन्दू धर्म ने शुरू से ही मानव मानव के बीच भेद किया. ऋग्वेद के पुरुषसूक्त ने स्पष्ट कहा कि "ब्राह्मण परमात्मा के मुख से, क्षत्रिय उस कि भुजाओं से, वैश्य उस के उरू से तथा शूद्र उस के पैरों से पैदा हुए."

बराह्मणो.अस्य मुखमासीद बाहू राजन्यः कर्तः |
ऊरूतदस्य यद वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ||

[ऋग्वेद १०/९०/१२]

हिन्दू बच्चे के जन्म के साथ ही भेद-भाव का दूषित जीवाणु उस से जुड़ जाता है जो उस के मरने के बाद भी उस का पिंड नहीं छोड़ता. जन्म के दुसरे सप्ताह बच्चे के नामकरण का आदेश है. नाम रखते ही उसे भेद-भाव कि घुट्टी पिला दी जाती है. सुनिए-

"ब्रह्मण का नाम मंगलसूचक शब्द से युक्त हो, क्षत्रिय का बल्सूचक शब्द से युक्त हो, वैश्य का धव्वाचक शब्द से युक्त हो और शूद्र का निंदित शब्द से युक्त हो."

"ब्राह्मण के नाम के साथ 'शर्मा', क्षत्रिय के साथ रक्शायुक्त शब्द 'वर्मा' आदि,वैश्य के नाम के साथ पुष्टि शब्द से युक्त 'गुप्त' आदि तथा शूद्र के नाम के साथ 'दास' शब्द लगाना चाहिए." [मनुस्मृति २/३१-३२]

यदि में भेद-भाव के विषय पर सारे हिन्दू धर्मशास्त्रों की शिक्षा यहाँ लिख दूं तो एक बड़ी पुस्तक बन जाए गी. इसी कारण इस निम्नलिखित वचन पर ही उत्तर समाप्त करता हूँ. सुनिए-

"सजातियों के रहित शूद्र से, ब्राह्मण शव का वाहन कभी न करना. क्योंकि शुदा स्पर्श से दूषित शव की आहूति, उसको स्वर्ग्दायक नहीं होती." [मनुस्मृति ५/१०४]

पंडित जी, यदि आपके शव को कभी शूद्र का स्पर्श लग गया तो आपको अपने धर्म से हाथ धोना पड़े गा.

प्रश्न १२

उत्तर

पंडित जी, जिस घटना पर आप इतना आश्चर्य कर रहे हैं, वो केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के माध्यम से अल्लाह का एक चमत्कार था. हमने ये दावा कभी नहीं किया कि किसी मनुष्य के लिए चाँद के दो टुकड़े करना संभव था. यदि आप ईश्वर को सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ मानते हैं तो ईश्वर अपनी रचित सृष्टि का हमसे कहीं अधिक ज्ञान रखते हैं. अल्लाह के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं कि चाँद के दो टुकड़े करदे और दुनिया में उथल पुथल भी न हो. यह चमत्कार मक्का के मूर्ति पूजकों के आग्रह पर दिखाया गया. उन्हों ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से अनुरोध किया कि यदि वह अल्लाह के सच्चे ईशदूत हैं तो चाँद के दो टुकड़े करें, और यदि वह ऐसा करदें तो सारे मूर्तिपूजक उनके सच्चे ईशदूत होने पर विशवास करें गे. लेकिन ये चमत्कार देखने के बाद भी उन्हों ने विशवास नहीं किया.

आप पूछते हैं कि चाँद को फिर जोड़ा किसने? जिसने तोडा उसी सर्वशक्तिमान अल्लाह ने जोड़ भी दिया.

हनुमान जी के बारे में उत्तर देने से पहले ये समझ लीजिये कि वर्त्तमान रामयाण की ऐतिहासिकता की पुष्टि कुरान नहीं करता. हमारी यह मान्यता है कि एक अल्लाह के ईशदूत (पैगम्बर) के बगैर कोई ऐसे विशाल चमत्कार नहीं दिखा सकता. हनुमान जी के जिस चमत्कार के बारे में आप पूछ रहे हैं वह जिस सन्दर्भ में हमें मिलता है, उसमें उस का विशवास नहीं किया जा सकता. हनुमान जी ने सूर्य को फल समझ के निगल दिया था. अब हम ऐसे चमत्कारों में विश्वास नहीं रखते जो व्यर्थ हों. चाँद के दो टुकड़े करने में और हनुमान जी का सूर्य को फल समझ के निगलने में कोई तुलना ही नहीं.

पंडित जी, कृपया आप लोगों को समझाने का कष्ट करें गे कि सृष्टि के आरम्भ में मनुष्य जवान जवान कैसे पैदा हुए थे जैसा कि आपके गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास ८ में लिखा है? इस बात को आप किस विज्ञान के आधार पर सिद्ध करें गे?

वेदों में चमत्कारिक घटनाएं

सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों के जवान जवान टपक जाने के अतिरिक्त कई और चमतारिक घटनाओं का विवरण वेदों में मिलता है. उदाहरण के लिए देखिये-

१. ऋग्वेद ३/३३/५ में विश्वामित्र जी ने मंत्र पढ़ कर सतलुज और ब्यास नदियों को खड़ा कर दिया था. सुनिए-

रमध्वं मे वचसे सोम्याय रतावरीरुप मुहूर्तमेवैः |
पर सिन्धुमछा बर्हती मनीषावस्युरह्वे कुशिकस्य सूनुः ||

अर्थात "हे जलवती नदियों, आप हमारे नम्र और मधुर वचनों को सुन कर अपनी गति को एक क्षण के लिए विराम दे दें. हम कुशक पुत्र अपनी रक्षा के लिए महती स्तुतियों द्वारा आप नदियों का भली प्रकार सम्मान करते हैं."

निरुक्त २/२४ से २६ में इस मंत्र का स्पष्ट अर्थ बताया गया है. अब ऋग्वेद के इस मंत्र में आपके लिए दो प्रश्न हैं. यहाँ, ऋषि विश्वामित्र सीधे सीधे नदियों को संबोधित कर रहे हैं, नदियों से बातें कर रहे हैं. इस को आप क्या कहें गे? और केवल ऋषि विश्वामित्र के मंत्र जपने से ही वे नदियाँ कैसे ठहर गयीं.

२. ऋग्वेद ४/१९/९ के अनुसार दीमक द्वारा खाए गए कुँवारी के बेटे को इन्द्र ने फिर से जीवित किया और सारे अंगों को इकट्ठे करदिया.

वम्रीभिः पुत्रम अग्रुवो अदानं निवेशनाद धरिव आ जभर्थ |
वय अन्धो अख्यद अहिम आददानो निर भूद उखछित सम अरन्त पर्व ||

अर्थात "हे इन्द्रदेव, आपने दीमकों द्वारा भक्ष्यमान 'अग्रु' के पुत्र को उनके स्थान (बिल) से बाहर निकाला. बाहर निकाले जाते समय अंधे 'अग्रु'-पुत्र ने आहि (सर्प) को भली प्रकार देखा. उसके बाद चींटियों द्वारा काटे गए अंगों को आपने (इन्द्रदेव ने) संयुक्त किया (जोड़ा)."

३. ऋग्वेद ४/१८/२ में वामदेव ऋषि ने मां के पेट में से इन्द्रदेव से बात की-

नाहम अतो निर अया दुर्गहैतत तिरश्चता पार्श्वान निर गमाणि |
बहूनि मे अक्र्ता कर्त्वानि युध्यै तवेन सं तवेन पर्छै ||

अर्थात वामदेव कहते हैं, "हम इस योनिमार्ग द्वारा नहीं निर्गत होंगे. यह मार्ग अत्यंत दुर्गम है. हम बगल के मार्ग से निकलेंगे. अन्यों के द्वारा करने योग्य अनेकों कार्य हमें करने हैं. हमें एक साथ युद्ध करना है, तथा एक के साथ वाद-विवाद करना है."

४. अथर्ववेद ४/५/६-७ चोर के लिए ऐसे मंत्र हैं जिनको जपने से घर के सारे सदस्य सो जाते हैं और चोर बड़े आराम से चोरी कर सकता है.

स्वप्तु माता स्वप्तु पिता स्वप्तु क्ष्वा स्वप्तु विश्पतिः |
स्वपन्त्वस्यै ज्ञातयः स्वपत्वयमभितो जनः ||
स्वप्न स्वप्नाभिकरणेन सर्वं नि ष्वापया जनम |
ओत्सूर्यमन्यान्त्स्वापयाव्युषं जागृतादहमिन्द्र इवारिष्टो अक्षितः ||

अर्थात "माँ सो जाए, पिता सो जाए, कुत्ता सो जाए, घर का स्वामी सो जाए, सभी बांधव एवं परिकर के सब लोग सो जाएं. हे स्वप्न के अधिष्ठाता देव, स्वप्न के साधनों द्वारा आप समस्त लोगों को सुला दें तथा अन्य लोगों को सूर्योदय तक निद्रित रखें. इस प्रकार सबके सो जाने पर हम इन्द्र के सामान, अहिंसित तथा क्षयरहित होकर प्रातःकाल तक जागते रहे."

कहिये पंडित जी, यह कैसी विद्या है?

प्रश्न १३

उत्तर

कुरान मानता है कि पहले ईश्वरीय पुस्तकें आई हैं मगर इसी के साथ यह भी कहता है कि बेईमान लोगों ने उन में कई परिवर्तन कर दिए हैं. इसलिए अब उनमें जिन बातों की पुष्टि कुरान करता है, वह सत्य हैं और जो बातें कुरान के विरुद्ध हैं वे किसी ने मिला दी हैं. अल्लाह फरमाते हैं-

وَأَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ

"हम (अल्लाह) ने आपकी ओर (ऐ नबी) कुरान उतारा है जो अपने से पहली पुस्तकों की पुष्टि करता है और उनका संरक्षक है (अर्थात गलत को सही से अलग करता है) ." [सूरह माइदा ५; आयात ४८]

तो पिछली किताबों में जो गलत शिक्षाएं मिला दी गयी थीं, उनका खंडन कुरान ने किया. उदाहरण के लिए देवता पूजा, अवतार पूजा, हजरत ईसा की पूजा, पुनर्जनम, स्त्री का अपमान, सती प्रथा, मनुष्य बलि, सन्यास, वर्णाश्रम, आदि.

इस प्रमाण से आपके प्रश्न का कोई आधार नहीं है, अल्लाह का ज्ञान अधूरा नहीं और ना ही पिछली किताबों में कोई कमी थी.

इसके अतिरिक्त ये भी सुन लीजिये कि यदि अग्नि ऋषि को, आप के अनुसार, ईश्वर ने ऋग्वेद दिया तो आदित्य ऋषि को सामवेद क्यूँ दिया? क्या ऋग्वेद में कोई कमी रह गयी थी जो सामवेद देना पड़ा? सामवेद तो ऋग्वेद मंडल ९ की पूरी नक़ल है. सिवाय ७५ मन्त्रों के जो नए हैं, सामवेद के १८०० मंत्र ऋग्वेद में पहले से हैं. ये ७५ मंत्र भी अग्नि को क्यों नहीं दिए? यदि ये कहा जाए कि सामवेद के मंत्र गाने के लिए अलग किये गए हैं तो ऋग्वेद में लिखा जा सकता था कि मंडल ९ को गा लिया करो. इसके अतिरिक्त यजुर्वेद और अथर्ववेद भी व्यर्थ हैं जिन में एक बड़ा हिस्सा ऋग्वेद से लिया गया है. क्या अग्नि ऋषि को ऋग्वेद देते समय आपके ईश्वर भूल गए थे कि उसे सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद भी देना है?

प्रश्न १४

उत्तर

'विज्ञान विरुद्ध' आपत्ति का उत्तर प्रश्न १२ में दे दिया. हजरत मरयम से बिन पति के संतान का पैदा होना सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ ईश्वर के लिए कोई बड़ी बात नहीं. आप विज्ञान को वहाँ लागू कर रहे हैं जहां उसका ज्ञानक्षेत्र नहीं है. आप पहले हमारे इस प्रश्न का उत्तर दीजिये कि सृष्टि के आरम्भ में कई मनुष्यों का जवान जवान प्रकट होना किस विज्ञानं के आधार पर सिद्ध करोगे (सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास ८)? अल्लाह ने हजरत मरयम की शर्म गाह (योनी) में फूँक नहीं मारा, यह खुला झूठ है. इस आयत का सही अनुवाद करने से पहले में आपको आयत का सन्दर्भ बता लेता हूँ.

हजरत मरयम पर जिस समय लोग व्यभिचार का आरोप लगा रहे थे उस का उत्तर देते हुए अल्लाह ने फरमाया-

وَالَّتِي أَحْصَنَتْ فَرْجَهَا فَنَفَخْنَا فِيهَا مِنْ رُوحِنَا وَجَعَلْنَاهَا وَابْنَهَا آيَةً لِلْعَالَمِينَ

और वह नारी जिसने अपनी पवित्रता की रक्षा की थी, हमने "उसके भीतर अपनी रूह फूँकी और उसे और उसके बेटे को सारे संसार के लिए एक निशानी बना दिया" [सूरह अंबिया २१; आयत ९१]

यहाँ पर अरबी शब्द 'अह्सनत फर्जहा' एक मुहावरा है जिसका अर्थ होता है अपनी पवित्रता (अर्थात इज्ज़त) की सुरक्षा. हजरत मरयम की एक खूबी यहाँ यह बतायी गयी कि उन्हों ने अपनी शेह्वत (वासना) को काबू में रखा.

'आत्मा (रूह) फूंकने' का अर्थ है आत्मा का शरीर में प्रवेश कराना. इस प्रकार का जनम हजरत मरयम और हजरत ईसा के साथ एक विशेष मामला था जिसके विशेष कारण थे. इस बात को सारे मनुष्यों पर लागू नहीं कर सकते.

हजरत मरयम का बिना पति के संतान पैदा करना आधुनिक विज्ञान के अनुसार संभव था

आधुनिक विज्ञान ने एक नयी खोज करली है जिसमें बिना बाप के पुरुष संतान पैदा हो सकती है. इसको वैज्ञानिक भाषा में पार्थीनोजेनेसिस (parthenogenesis) कहा जाता है. पहले पहले यह केवल निचले कीड़े मकोड़ों में देखा जाता था, लेकिन २ अगस्त २००७ को ये पता चल गया कि दक्षिण कोरया के वैज्ञानिक Hwang Woo-Suk ने parthenogenesis के माध्यम से पहला मनुष्य भ्रूण (embryo) पैदा किया. अधिक जानकारी के लिए देखिये ये वेबसाइट

http://www.scientificamerican.com/article.cfm?id=korean-cloned-human-cells

और

http://www.timesonline.co.uk/tol/news/science/article2189271.ece

तो पंडित जी, अफ़सोस कि विज्ञान ने आपका साथ नहीं दिया बल्कि कुरान की पुष्टि करदी. निश्चित रूप से कुरान अल्लाह की कित्ताब है जिस पर अब आपको विशवास करना चाहिए.

गड़े से अगस्त्य और वसिष्ठ

ऋग्वेद में आता है कि मित्र और वरुण देवता उर्वशी नामक अप्सरा को देख कर कामपीडित हुए. उन का वीर्य स्खलित हो गया, जिसे उन्होंने यज्ञ कलश में दाल दिया. उसी कलश से अगस्त्य और वसिष्ठ उत्पन्न हुए:

उतासि मैत्रावरुणो वसिष्ठोर्वश्या बरह्मन मनसो.अधि जातः |
दरप्सं सकन्नं बरह्मणा दैव्येन विश्वे देवाः पुष्करे तवाददन्त ||
स परकेत उभयस्य परविद्वान सहस्रदान उत वा सदानः |
यमेन ततं परिधिं वयिष्यन्नप्सरसः परि जज्ञे वसिष्ठः ||
सत्रे ह जाताविषिता नमोभिः कुम्भे रेतः सिषिचतुः समानम |
ततो ह मान उदियाय मध्यात ततो जातं रषिमाहुर्वसिष्ठम ||

- ऋग्वेद ७/३३/११-१३

अर्थात "हे वसिष्ठ, तुम मित्र और वरुण के पुत्र हो. हे ब्रह्मण, तुम उर्वशी के मन से उत्पन्न हो. उस समय मित्र और वरुण का वीर्य स्खलन हुआ था. विश्वादेवगन ने दैव्य स्तोत्र द्वारा पुष्कर के बीच तुम्हें धारण किया था. यज्ञ में दीक्षित मित्र और वरुण ने स्तुति द्वारा प्रार्थित हो कर कुंभ के बीच एकसाथ ही रेत (वीर्य) स्खलन किया था. अनंतर मान (अगस्त्य)उत्पन्न हुए. लोग कहते हैं कि ऋषि वसिष्ठ उसी कुंभ से जन्मे थे."

प्रश्न १५

उत्तर

पंडित जी, आपका अंतिम प्रश्न तो झूठ का भंडारघर है. पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने हजरत जैनब से इस्लामी नियम के अनुसार निकाह किया. आप ने अपने दावे का कोई प्रामाणिक हवाला नहीं दिया. आसमान में निकाह हुआ, यह आपने कहाँ पढ़ा है? कृपया कुछ ठोस प्रमाण प्रस्तुत कीजिये, उस के बाद ही में उत्तर देने का विचार करूंगा.

वैदिक शिक्षा के नमूने

१.नियोग के नाम पर व्यभिचार

व्यभिचार का अर्थ है पति या पत्नी के जीवित व मित्र होने की स्तिथि में किसी अन्य स्त्री या पुरुष से अवैध रूप में यौनसंबंध स्थापित करना. हिन्दू धर्मशास्त्रों में इस व्यभिचार को 'नियोग' के नाम पर वैध करार दिया गया है. स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश (चतुर्थ समुल्लास) में इस प्रथा का विस्तार पूर्वक पूर्ण समर्थन किया है. उन्होंने वेदों और मनुस्मृति के प्रमाण उपस्थित कर के इसकी वैधता प्रतिपादित की है.

ऋग्वेद १०/४०/२ में 'विधवेव देवरम' आता है.इसका अर्थ करते हुए स्वामी दयानंद ने लिखा है- "जैसे विधवा स्त्री देवर के साथ संतानोत्पत्ति करती है, वैसे ही तुम भी करो." फिर उन्होंने निरुक्तकार यास्क के अनुसार 'देवर' शब्द का अर्थ बताते हुए लिखा है- "विधवा का जो दूसरा पति होता है, उसको देवर कहते हैं." (देखें, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, नियोग प्रकरण)

इसी प्रकार कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में कानून बनाए. उस का कहना है कि बूढ़े एवं असाध्य रोग से पीड़ित राजा को चाहिए कि वह अपनी रानी का किसी मातृबंधु (मां की तरफ से जो रिश्तेदार हो यथा मामा आदि) या अपने किसी सामंत से नियोग करवा कर पुत्र उत्पन्न करा ले. (अर्थशास्त्र १/१७)

नियोग कि यह व्यभिचारनुमा धार्मिक रस्म इंसानी गरिमा के सिद्धांत का हनन करती है.

२. देवदासी प्रथा

दासता का एक रूप सदियों से चला आया है. वह है -देवदासियां. मंदिरों विशेषतः दक्षिण भारत के मंदिरों में देवदासियां रहती हैं. ये वे लडकियां हैं जिन्हें उनके माता पिता बचपन में ही मंदिरों में चढ़ा देते हैं. वहीँ ये जवान होती हैं. इन का देवता के साथ विवाह कर दिया जाता है. इन में से कुछ सुन्दर स्त्रियाँ पन्देपुजारोयों के भोगविलास की सामग्री बनती हैं. शेष देवदर्शन को आए हुए यात्रियों आदि व अन्य लोगों की कामवासना को शांत कर के जीवननिर्वाह करती हैं.

१४ अगस्त, १९५६ से देवदासी प्रथा कानूनन अवैध घोषित कर दी गयी है. फिर भी यह प्रथा किसी न किसी रूप में हिन्दू मंदिरों में मौजूद है.


इसी के साथ पंडित महेंद्रपाल आर्य के १५ प्रश्नों के इस्लाम और हिन्दू धर्मशास्त्रों की रौशनी में विस्तृत व सही उत्तर समाप्त हुए. हम आशा करते हैं कि पंडित महेंद्रपाल सत्य को स्वीकार करें गे और इस्लाम की पवित्र छाया में लोट आएं गे.

31 comments:

  1. आपने बहुत ही शालीनता और संयम से उत्‍तर दिये हैं, धन्‍य हो आप जैसे धर्मवीरों पर जितना गर्व किया जाये कम है

    आर्यों ने हम सनातनियों को बहुत कष्‍ट दिया है, हमारी प्रार्थनाओं का ही फल आज हमें यह नज़र आ रहा है

    बेहद प्रसन्‍नता हुइ

    सच्‍चाई की जय हो

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  2. Vedo par Comment karne se pahle bina purvagarah ke padho aur ye sabhi jante hai ki tum bhi jabrdasti banaye muslim ho aur bl sharma ka name bhandafodu chori kiya hai
    chor
    chor

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  3. p.k. shaayad tum madira P. K. comment kar rahe ho. Vedon ko to meine chaan daal hai. Tum se ya tumhaare BL sharma se koi jawaab ban sake to bata dena. bebuniyaad aarop lagana koi tum se seekhe. Abhi mein naya lekh likh raha hoon. Talwaar ke bal par hindu dharm ka prachaar kaise huva.

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  4. वेद का हरेक शब्द योगिक है, उनमें इतिहास नहीं है। लेकिन कुरान में इतिहास है खानदानी बाते हैं। वेद पर मैं तुम्हें चैलेंज करती हूं, मुझसे शास्त्रार्थ करो। हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई कहीं भी
    वेद में केवल विज्ञान है। उर्वशी के प्रसंग में उर्वर भूमि के लिए है और यह मत भूलो कि वेद के 160 मंत्र कुरान में हैं, बिलकुल हूबहू अर्थ वाले।

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    1. ही ही बहन जी मध्यप्रदेश आ जाओ डीबेट कर लेना ठीक है। 😝

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    2. तो वो वेदों के मंत्र जो कुरान में है वो चुराए हुवे है मेडम जी

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  5. Lekh mat likhiye Sultan sahab Pandit ji se jakar Bahas(tark-vitark) kariye vo bhi sabke samne. chuchaap baith kar post mat daliye. Aur ha Talwar ke bal par Hindu dharm aage nahi badha Islaam badha hai ye jo aaj bhi jari hai. Jo ISIS wale kar rahe hai. Pakistan aur bangladesh main Hinduo ke saath kya ho raha hai vo sab jante hai. Baato ko tod marod kar pesh mat kariye. 24 aayte jo kuran main likhi hai unko Court ne bhi aapthijanak bataya tha. Yadi Islaam shanti priya dharm hota to itne atankwadi paida nahi hote. Pahale atankvadiyo ko khatm karne ke liye kuch lekh likhe phir hinduo ke baare main soche to behatar hoga.

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  6. Mushafiq bhai mashallah Allah pak apse deen ka kaam lerha h Inshallah apko kamyabi zaroor milegi ye fitna koi nya fitna nhi h ye to muhmmad sallallahualaihi wasallam ke waqt me bhi the or inko muh tod jwab Bhi milta rha h or milega bhi inshallah plz contect me this 8273242412

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  7. Bhai aapka ialam1 itna hi shantipriya he toh aaj sabhi islamic countries me ye log aapas me hi ek dusre ko maar kyu rahe he...ab aap excuse doge ki vo sachhe muslim nahi he...apna gyan apne pas rakho or apne samaj ko sudharne ka kam karo sir g.... muslim banana he toh Dr.Apj kalam,captain Abdul Hamid banao na ki yakub menon or daud Ibrahim.

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  8. Bhai aapka ialam1 itna hi shantipriya he toh aaj sabhi islamic countries me ye log aapas me hi ek dusre ko maar kyu rahe he...ab aap excuse doge ki vo sachhe muslim nahi he...apna gyan apne pas rakho or apne samaj ko sudharne ka kam karo sir g.... muslim banana he toh Dr.Apj kalam,captain Abdul Hamid banao na ki yakub menon or daud Ibrahim.

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  9. इस्लाम को आंतकवादी बोलते हो। जापान मे तो अमेरिका ने परमाणु बम गिराया लाखो बेगुनाह मारे गये तो क्या अमेरिका आंतकवादी नही है। प्रथम विश्व युध्द मे करोडो लोग मारे गये इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या अब भी मुस्लिम आंतकवादी है। दूसरे विश्व युध्द मे भी लाखो करोडो निर्दोषो की जान गयी इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या मुस्लिम अब भी आंतकवादी हुए अगर नही तो फिर तुम इस्लाम को आंतकवादी बोलते कैसे हो। बेशक इस्लाम शान्ति का मज़हब है।और हाॅ कुछ हदीस ज़ईफ होती है।ज़ईफ हदीस उनको कहते है जो ईसाइ और यहूदियो ने गढी है। जैसे मुहम्मद साहब ने 9 साल की लडकी से निकाह किया ये ज़ईफ हदीस है। आयशा की उम्र 19 साल थी। ये उलमाओ ने साबित कर दिया है। क्योकि आयशा की बडी बहन आसमा आयशा से 10 साल बडी थी और आसमा का इंतकाल 100 वर्ष की आयु मे 73 हिज़री को हुआ। 100 मे से 73 घटाओ तो 27 साल हुए।आसमा से आयशा 10 साल छोटी थी तो 27-10=17 साल की हुई आयशा और आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम ने आयशा से 2 हिज़री को निकाह किया।अब 17+2=19 साल हुए। इस तरह शादी के वक्त आयशा की उम्र 19 आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम की 40 साल थी।हिन्दुओ का इतिहास द्रोपती ने 5 पांडवो से शादी की तो क्या ये गलत नही है हम मुसलमान तो 4 औरते से शादी कर सकते है ऐसी औरते जो विधवा हो बेसहारा हो। लेकिन क्या द्रोपती सेक्स की भूखी थी। और शिव की पत्नी पार्वती ने गणेश को जन्म दिया शिव की पीछे। पार्वती ने फिर किस के साथ सेक्स किया ।इसलिए शिव ने उस लडके की गर्दन काट दी क्या भगवान हत्या करता है ।श्री कृष्ण गोपियो को नहाते हुए क्यो देखता था और उनके कपडे चुराता था जबकि कृष्ण तो भगवान था क्या भगवान ऐसा गंदा काम कर सकता है । महाभारत मे लिखा है कृष्ण की 16108 बीविया थी तो फिर हम मुस्लिमो को एक से अधिक शादी करने पर बुरा कहा जाता । महाभारत युध्द मे जब अर्जुन हथियार डाल देता तो क्यो कृष्ण ये कहते है ऐ अर्जुन क्या तुम नपुंसक हो गये हो लडो अगर तुम लडते लडते मरे तो स्वर्ग को जाओगे और अगर जीत गये तो दुनिया का सुख मिलेगा। तो फिर हम मुस्लिमो को क्यो बुरा कहा जाता है हम जिहाद बुराई के खिलाफ लडते है अत्यचारियो और आक्रमणकारियो के विरूध वो अलग बात है कुछ लोग जिहाद के नाम पर बेगुनाहो को मारते है और जो ऐसा करते है वे ना मुस्लिम है और ना ही इन्सान जानवर है। राम और कृष्ण के तो मा बाप थे क्या कोई इन्सान भगवान को जन्म दे सकता है। वेद मे तो लिखा है ईश्वर अजन्मा है और सीता की बात करू तो राम तो भगवान थे क्या उनमे इतनी भी शक्ति नही थी कि वे सीता के अपहरण को रोक सके। राम जब भगवान थे तो रावण की नाभि मे अमृत है ये उनको पहले से ही क्यो नही पता था रावण के भाई ने बताया तब पता चला। क्या तुम्हारे भगवान राम को कुछ पता ही नही कैसा भगवान है ये। और इन्द्र देवता ने साधु का वेश धारण कर अपनी पुत्रवधु का बलात्कार किया फिर भी आप देवता क्यो मानते हो। खुजराहो के मन्दिर मे सेक्सी मानव मूर्तिया है क्या मन्दिर मे सेक्स की शिक्षा दी जाती है मन्दिरो मे नाच गाना डीजे आम है क्या ईश्वर की इबादत की जगह गाने हराम नही है ।राम ने हिरण का शिकार क्यो किया बहुत से हिन्दु कहते है हिरण मे राक्षस था तो क्या आपके राम भगवान मे हिरण और राक्षस को अलग करने की क्षमता नही थी ये कैसा भगवान है।हमे कहते हो जीव हत्या पाप है मै भी मानता हू कुत्ते के बेवजह मारना पाप है । कीडी मकोडो को मारना पाप है पक्षियो को मारना पाप है।

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  10. हमे कहते हो मांस क्यो खाते हो लेकिन ऐसे जानवर जिनका कुरान मे खाना का जिक्र है खा सकते है क्योकि मुर्गे बकरे नही खाऐगे तो इनकी जनसख्या इतनी हो जायेगी बाढ आ जायेगी इन जानवरो की। सारा जंगल का चारा ये खा जाया करेगे फिर इन्सान के लिए क्या बचेगा। हर घर मे बकरे होगे। बताओ अगर हर घर मे भैंसे मुर्गे होगे तो दुनिया कैसे चल पाऐगी। आए दिन सिर्फ हिन्दुस्तान मे लाखो मुर्गे और हजारो कटडे काटे जाते है । 70% लोग मांस खाकर पेट भरते है । सब को शाकाहारी भोजन दिया जाये तो महॅगाई कितनी हो जाएगी। समुद्री तट पर 90% लोग मछली खाकर पेट भरते है। समझ मे आया कुछ शाकाहारी भोजन खाने वालो मांस को गलत कहने वाले हिन्दुओ अक्ल का इस्तमाल करो ।खैर हिन्दु धर्म मे शिव भगवान ही नशा करते है तो उसके मानने वाले भी शराबी हुए इसलिए हिन्दुओ मे शराब आम है ।डाक कावड मे ऊधम मचाते है ना जाने कितनो की मौत होती है रास्ते मे कोई मुसाफिर आये तो गाली देते है । जितने त्योहार है हिन्दुओ के सब बकवास। होली को देखलो कहते है भाईचारे का त्योहार है। पर शराब पिलाकर एक दुसरे से दुश्मनी निकाली जाती है।होली से अगले दिन अखबार कम से कम 100 लोगो के मरने की पुष्टि करता है ।अब दीपावली को देखलो कितना प्रदुषण बुड्डे बीमार बुजुर्गो की मोत होती है। पटाखो के प्रदुषण से नयी नयी बीमारिया ऊतपन होती है। गणेशचतुर्थी के दिन पलास्टर ऑफ पेरिस नामक जहरीले मिट्टी से बनी करोडो मूर्तिया गंगा नदियो मे बह दी जाती है। पानी दूषित हो जाता है साथ ही साथ करोडो मछलिया मरती है तब कहा चली जाती है इनकी अक्ल जीव हत्या तो पाप है।हम मुस्लिमो को बोलते है चचेरी मुमेरी फुफेरी मुसेरी बहन से शादी कर लेते हो। इन चूतियाओ से पूछो बहन की परिभाषा क्या होती है मै बताता हू साइंस के अनुसार एक योनि से निकले इन्सान ही भाई बहन हो सकते है और कोई नही। तुम भाई बहन के चक्कर मे रह जाओ इसलिए हिन्दु लडको की शादिया भी नही होती अक्सर । हमारे गाव मे 300 हिन्दु लडके रण्डवे है। शादी नही होती उनकी गोत जात पात ऊॅच नीच की वजह से फिर उनका सेक्स का मन करता है वे फिर लडकियो महिलाओ की साथ बलात्कार करते है ये है हिन्दु धर्म । और सबूत हिन्दुस्तान मे अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा रेप होते है । किसी मुस्लिम मुल्क का नाम दिखा दो या बता दो बता ही नही सकते। तुम्हारे हिन्दुओ लडकियो को कपडे पहनने की तमीज नही फिटिंग के कपडे छोटे कपडे जीन्स टीशर्ट आदि पहननती है ।भाई बाप के सामने भी शर्म नही आती तुमको ऐसे कपडो मे थू ऐसे कपडो मे लडकी को देखकर तो सभी इन्सानो की ऑटोमेटिकली नीयत खराब हो जाती है इसलिए हिन्दु और अंग्रेजी लडकियो की साथ बलात्कार होते हे इसके लिए ये लडकिया खुद जिम्मेदार है।।और हिन्दु लडकियो के हाथ मे सरे आम इंटरनेट वाला मोबाइल उसमे इतनी गंदी चीजे।

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  11. हमे कहते हो मांस क्यो खाते हो लेकिन ऐसे जानवर जिनका कुरान मे खाना का जिक्र है खा सकते है क्योकि मुर्गे बकरे नही खाऐगे तो इनकी जनसख्या इतनी हो जायेगी बाढ आ जायेगी इन जानवरो की। सारा जंगल का चारा ये खा जाया करेगे फिर इन्सान के लिए क्या बचेगा। हर घर मे बकरे होगे। बताओ अगर हर घर मे भैंसे मुर्गे होगे तो दुनिया कैसे चल पाऐगी। आए दिन सिर्फ हिन्दुस्तान मे लाखो मुर्गे और हजारो कटडे काटे जाते है । 70% लोग मांस खाकर पेट भरते है । सब को शाकाहारी भोजन दिया जाये तो महॅगाई कितनी हो जाएगी। समुद्री तट पर 90% लोग मछली खाकर पेट भरते है। समझ मे आया कुछ शाकाहारी भोजन खाने वालो मांस को गलत कहने वाले हिन्दुओ अक्ल का इस्तमाल करो ।खैर हिन्दु धर्म मे शिव भगवान ही नशा करते है तो उसके मानने वाले भी शराबी हुए इसलिए हिन्दुओ मे शराब आम है ।डाक कावड मे ऊधम मचाते है ना जाने कितनो की मौत होती है रास्ते मे कोई मुसाफिर आये तो गाली देते है । जितने त्योहार है हिन्दुओ के सब बकवास। होली को देखलो कहते है भाईचारे का त्योहार है। पर शराब पिलाकर एक दुसरे से दुश्मनी निकाली जाती है।होली से अगले दिन अखबार कम से कम 100 लोगो के मरने की पुष्टि करता है ।अब दीपावली को देखलो कितना प्रदुषण बुड्डे बीमार बुजुर्गो की मोत होती है। पटाखो के प्रदुषण से नयी नयी बीमारिया ऊतपन होती है। गणेशचतुर्थी के दिन पलास्टर ऑफ पेरिस नामक जहरीले मिट्टी से बनी करोडो मूर्तिया गंगा नदियो मे बह दी जाती है। पानी दूषित हो जाता है साथ ही साथ करोडो मछलिया मरती है तब कहा चली जाती है इनकी अक्ल जीव हत्या तो पाप है।हम मुस्लिमो को बोलते है चचेरी मुमेरी फुफेरी मुसेरी बहन से शादी कर लेते हो। इन चूतियाओ से पूछो बहन की परिभाषा क्या होती है मै बताता हू साइंस के अनुसार एक योनि से निकले इन्सान ही भाई बहन हो सकते है और कोई नही। तुम भाई बहन के चक्कर मे रह जाओ इसलिए हिन्दु लडको की शादिया भी नही होती अक्सर । हमारे गाव मे 300 हिन्दु लडके रण्डवे है। शादी नही होती उनकी गोत जात पात ऊॅच नीच की वजह से फिर उनका सेक्स का मन करता है वे फिर लडकियो महिलाओ की साथ बलात्कार करते है ये है हिन्दु धर्म । और सबूत हिन्दुस्तान मे अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा रेप होते है । किसी मुस्लिम मुल्क का नाम दिखा दो या बता दो बता ही नही सकते। तुम्हारे हिन्दुओ लडकियो को कपडे पहनने की तमीज नही फिटिंग के कपडे छोटे कपडे जीन्स टीशर्ट आदि पहननती है ।भाई बाप के सामने भी शर्म नही आती तुमको ऐसे कपडो मे थू ऐसे कपडो मे लडकी को देखकर तो सभी इन्सानो की ऑटोमेटिकली नीयत खराब हो जाती है इसलिए हिन्दु और अंग्रेजी लडकियो की साथ बलात्कार होते हे इसके लिए ये लडकिया खुद जिम्मेदार है।।और हिन्दु लडकियो के हाथ मे सरे आम इंटरनेट वाला मोबाइल उसमे इतनी गंदी चीजे।

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    1. दुनिया का60% शाकाहारी समान उन जानवरो को कीलय जाता है जिसको खाते हो अगर वो अनाज फल सब्जी मास खाना छोड़ कर सही प्रयोग करे तो सारी दुनिया का पेट शाकाहार भोजन से भर सकता है

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  12. तुम हिन्दु अपनी लडकियो को पढाते इतने ज्यादा हो जो उसकी शादी भी ना हो सके पढी लिखी लडकी को स्वीकार कौन करता है जल्दी से। पढने का तो नाम है घरवालो के पैसे बरबाद करती है और अय्याशी करती है। इन चूतियाओ से पूछो लडकी इतना ज्यादा पढकर क्या करेगी। मर्द उनके जनखे है जो औरत से कमवाऐगे और खुद बैठकर खाऐगे।सही कहू तो मर्दो की नौकरिया खराब करती है जहा मर्द 20 हजार रूपये महीने की मांग करे वहा लडकिया 2 हजार मे ही तैय्यार हो जाती है। सही कहू बेरोजगारी लडकियो को नौकरी देनी की वजह से है। और सालो तुम्हारा धार्मिक पहनावा क्या है साडी। जिसमे औरत का आधा पेट दिखता है। पेट छुपाने की चीज है या सबको दिखाने की बताओ । औरत की ईज्जत से खिलवाड खुद करते हो । और मर्दो क धार्मिक पहनावा क्या है धोती। जरा से हवा चलती है तो धोती एकदम उडती है। सारी शर्मगाह दिखाई देती है। शर्म नही आती तुम हिन्दुओ को। क्या ये तुम हिन्दुओ की असलियत नही है। और तुम्हारे सभी भगवान भी धोती के अलावा कुछ नही पहनते थे। बाकी सारा शरीर खुला रहता है
    ये कैसे भगवान है जिन्हे कपडे पहनने की भी तमीज नही है।

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    1. कुछ भी हो पर तेरी कॉम की तरह नही बाप अपनी बेटी से निकाह करे भी अपनी बहन का हलाला करे ससुर अपने बेटे की बहू को ही अपनी लुगाई बना ले

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  13. महिर्षि दयानंद कृत यजुर्वेद भाष्य १५:१५ वाली बात यहां झुठ लिखी है । और सभी वेद मंत्रो के अर्थ यहां असत्य बतायें हैं आपने ।

    वेद में कहिं भी यह नहीं लिखा ।

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  14. महिर्षि दयानंद कृत यजुर्वेद भाष्य १५:१५ वाली बात यहां झुठ लिखी है । और सभी वेद मंत्रो के अर्थ यहां असत्य बतायें हैं आपने ।

    वेद में कहिं भी यह नहीं लिखा ।

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  15. और आप स्वयं पण्डित जी से शास्त्रार्थ करें यहां वेदों के उटपटांग अर्थ लिखकर भ्रमित न करें ।

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    1. BHAI PANDIT JI BHI JHUTHE HE BULAVO TO AATE NHI HE KYA KARE UNKA

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  16. ये वेद मंत्रों का अर्थ गलत है। ये कँहा से लिया है? एक तरफ कहते है पंडित जी ने कुरान का गलत अर्थ दिया है और दूसरी और खुद वेदों का गलत अर्थ दे रहे है। ऐसे ही झूठ पर ही आधारित है इस्लाम। जीवन पर लगते मरते है और अशांत जीवन व्यतीत करते हैं कि हमे हुरे और शराब मिलेगी लेकिन दोनों से ही रह जाते है और मिलता है नर्क और नीच योनियां।

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  17. Kshama karna bhai hindutav ki Islam se tulna galat hai. Islam Pooja paddhti maatra hai

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  18. हर अतअंकवादी काट मुल्ला ही क्यूँ होता है

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  19. अद्भुत लाजवाब बहुत ही शालीन और प्रमाणिक जी

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  20. ज़बरदस्त ला जवाब उत्तर

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  21. अल्लाह क्या अरबी भाषा ही समझता है

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  22. कितना झूठ और फरेब है इस्लाम मे मालूम हो गया।
    पंडित जी सत्यार्थ प्रकाश में किए गए एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाए अभी तक🤣🤣

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  23. अरे झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती मुल्लों को। इस्लाम से प्रेरित होकर हमारी युवा पीढ़ी आतंकी बन रही है। लानत है इस्लाम नामक मजहब पर।

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  24. Isalam etana achha hai to America wale kapade kyu nikalwate hai isalam walo se

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